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एक गुजारिश इम्पलोई की बॉस से

जैसी सोच वैसा वक्त
जैसी सोच वैसा वक्त
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कुछ बातें सार्वभौमिक रुप से सभी जगह नजर आती हैं जैसे इंसानी फितरत वो हर जगह एक जैसी होती है। मैंने कहीं सुना था कि जब कभी आप कोई अच्छा विचार पढ़े तो उसे पढ़ कर उस पर चिंतन करें और उसे अपने जीवन में अमल करने का प्रयत्न करें। आजकल बहुत समय से मैं यही कर रही हूं। एक बार मैने सुना कि मनुष्य के दुखों का एक मात्र कारण यह है कि वो सोचता कुछ है, कहता कुछ है और करता कुछ है यह जो विसंगति है इससे वो खुद तो सदैव भ्रम की स्थिति में रहता ही है और दूसरों को भी डाल देता है। यह बात जब मैने देखनी शुरु करी और इस पर चिंतन करना शुरु करा तो पाया यह बिल्कुल सही है। क्यों हमारे बच्चे हमारी बात नहीं मानते। हम उन्हें कैसे ईमानदारी और सच्चाई के मार्ग पर ले जाए जब हम हर रोज न जाने कितने झूठ बोलते हैं और कितनी बेईमानी करते हैं। कैसे हम अपने घरों में काम करने वाले लोगों से उम्मीद करें कि वे अपना काम निष्ठा से करें जब हम खुद अपने काम से कामचोरी कर इतराते हैं। एक बॉस कैसे अपने स्टॉफ को जिम्मेदारी का एहसास दिलाएगा या नियमों में बॉंधने की कोशिश करेगा जब वो खुद हर रोज अपने हितों की पूर्ति करने के लिए नियमों की धज्जियां उड़ाता है। यही कारण है कि हम खुद भी दुखी रहते हैं और दूसरों को भी दुखी करते है। मैने तो थोड़ा इस पर काम करना शुरु कर दिया है। मैं जो दूसरों से चाहती हूं मैं कोशिश करती हूं पहले मैं स्वयं करुं और कई बार जब मुझे करता हुए देखते हैं तो दूसरें खुद ब खुद वो करने लगते हैं। और जब मुझे किसी दूसरे पर गुस्सा आता है तो मैं सोचती हूं कि क्या मैं यह नहीं करती हूं जब ऐसी स्थिति आती है। अगर मेरा रवैया भी यही होता है तो मुझे कोई हक नहीं है कि मैं दूसरों से कोई उम्मीद करुं। बॉस की खिल्ली उड़ाते हुए भी मैने प्रत्येक कर्मचारी को पाया है चाहे वो कोई प्राईवेट कंपनी में काम कर रहा हो या किसी सरकारी कार्यालय में। जैसे ही ऑफिस की छुटटी होती है तो मैट्रो में, बसों में, सड़क पर या घरों में लोग एक ही बात करते नजर आ रहे होते हैं हमारा बॉस ऐसा है, हमारा बॉस ऐसा है। बहुत कम लोग ऐसे हैं जो अपने बॉस का इज्जत करते हैं। डर से सर झुकाना या काम करना अलग बात है किंतु उनकी गैरहाजिरी में उनके लिए अच्छे शब्दों का प्रयोग करना ही वास्तविक सम्मान है। तो एक इम्पलोई अपने बॉस से दिल ही दिल में क्या गुजारिश कर रहा है, मैं इन्हें अपने शब्दों में व्यक्त कर रही हूं। ये किसी एक पर कोई व्यक्तिगत आघात नहीं हैं। ये तो सार्वभौमिक सत्य है । आप क्या इससे सहमत हैं? कृपया बताईगा जरुर और सच कहिएगा । मीनाक्षी भसीन

एक गुजारिश इम्पलोई की बॉस से

आपको देखा मैने कई बार उसूलों की धज्जियां उड़ाते हुए
आप जचते ही नहीं मुझे नैतिकता का सबक पड़ाते हुए

आप लेट हो जाएं तो आपकी प्रोबल्म ही कुछ ऐसी है
हम लेट हो जाएं तो हमारी फितरत ही कुछ ऐसी है
आपकी हजारों गल्तियां भी माफ हो जाएं
हमारी एक गल्ती भी आप माफ न कर पाएं
आपको देखा मैने कई बार झूठे बहाने बनाते हुए
आप जचते ही नहीं मुझे सच्चाई की राह दिखलाते हुए

आप न आकर भी हाजरी अपनी लगाते रहे
हम कुछेक मिनट लेट आने पर भी क्रास की सजा खाते रहे
हमारे श्रम का क्रेडिड पाकर आप तन्हा ही बाग बाग खिलते रहे
पर आपकी ऑवरलुकिंग को हमारी लापरवाही का तमगा मिलता रहे
आपको देखा मैने कई बार हमारी मेहनत का क्रेडिड पाते हुए
आप जंचते ही नहीं बईमानी को युं झुठलाते हुए

आप काम न कर पाएं तो थकावट का है यह असर
हमारी तबीयत हो अगर खराब भी तो आप रहें बेअसर
आपको ऑफिस में स्टॉफ और घर में नौकर का है सहारा
हम तो ऑफिस के भी नौकर और घर भी लगे डयूटी का कोई कारखाना
आपको देखा मैने अक्सर घर व आफिस में आर्डर से धमकाते हुए
आप जचते ही नहीं मुझे देख युं मुस्काते हुए

खता ये आपकी नहीं जब मेरा खुदा ही चुपचाप है
मानकर भी न माने मन क्या यह पिछले कर्मों का हिसाब है
तेरी दुनिया में मैने पाया झूठे, मक्कार, बईमानों को नित कामयाबी के गीत गाते हुए
सादगी पसंद, मासुमियत भरे , भोले भालों को देखा मैने इन मक्कारो से घबराते हुए
या तो तू बदल अगले पिछले कर्मों की यह आंख मिचौली,
जो करें पाप वो फिर न खेल पाएं खुशिओं की कोई होली,
जो करे आज कोई गल्ती तो मिले उसे आज ही सजा
करे जो आज भलाई तो झट महक जाए उसकी फिजा
ऐ खुदा देखा मैने तेरे बन्दों को रिश्वत से तुझे लुभाते हुए
तुझसे ही मेरी उम्मीद बंधी, स्वपन लूं मैं मेरी मेहनत का सिला पाते हुए

मीनाक्षी भसीन 21-12-14© सर्वाधिकार सुरक्षित

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