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काश ऐसा हो जाए——

जैसी सोच वैसा वक्त
जैसी सोच वैसा वक्त
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आजकल मैं बहुत महसूस कर रही हूं कि हमारे आस-पास सभी लोग कशमकश से गुजर रहे है सच कहुं तो मैं भी। कई बार इतनी मेहनत करने पर भी कुछ हांसिल नहीं हो पाता है और मैने अपने आस-पास कितने ही ऐसे लोगों को बिना मेहनत किए ही इतना कुछ हांसिल करते देखा है और तो और इन लोगों को ईमानदारी और सच्चाई की धज्जियां उड़ाते देखा है। इनके नियम दूसरों के लिए कुछ और होते हैं यानि बड़े ही उपदेशात्मक और अपने स्वार्थ-सिद्धि के लिए तो यह सभी प्रकार के तरीके, चाहे वो नैतिक हों या अनैतिक अपनाने से झिझकते नहीं है। पर फिर भी इनका भविष्य मुझे उज्ज्वल ही दिखाई पड़ता है तब मुझे गुस्सा आ जाता है। पर क्या यह सही है? अब आप कहेगें यह तो स्वभाविक ही है। पर क्या उनसे ईष्या करने से मुझे मेरे लक्ष्य की प्राप्ति हो जाएगी? क्या मेरा नुकसान पूरा हो जाएगा? क्या मैं जिन्दगी में कुछ बन जाउगीं? शायद इतनी छोटी सोच से मैं अपनी सफलताओं के दायरे को सीमित कर रही हूं। शायद सफलता का अर्थ इतना संकुचित नहीं है। असली सफलता तो अपने मन का मालिक बन कर उससे अच्छे काम करवाकर लोगों की दुआओं को बटोरना है और मेरा यकीन है कि मुझे सफलताओं के पीछे भागने की कतई जरुरत नहीं है मैं अपना काम सच्चाई से करुगीं तो वो सभी मेरे पास खुद चल कर आएगा । तो अभी ले रही हूं मैं यह स्वप्न आप भी देखें और साकार करने का प्रयत्न करें मेरे साथ

काश ऐसा हो जाए——

मेरी तमाम नाकामियों के बावजूद
अगर तेरी उचाईओं पे मेरा दिल बाग-बाग हो जाए
तुझे आगे बढ़ता देख, न रंजिश हो मुझे कोई
तेरी खुशिओं पर मन उमंग मेरी बढ़ जाए
तो मेरे दोस्त, मेरा परमात्मा से मिलन न हो जाए
काश ऐसा हो जाए——

एक ही हैं हम औलादें, एक नूर से ही निकले हैं हम
पर किसी को भिगाती रहे खुशिओं की बारिश
और किसी पे छाए, गमों के बादल हर दम
जब एक ही राह पर चलते चलते, तू आसमां को छू जाए
और मेरे पैरों तले जमीं ही निकल जाए
पर इस आजमाईश की घड़ी में भी होंठों की मुस्कान न गायब हो पाए
तो मेरे दोस्त, मेरा परमात्मा से मिलन न हो जाए
काश ऐसा हो जाए

सोचो तुम्हारे घर बनाने वाले को नसीब न हो खुद का घर
गाड़ियों को चमकाने वाले चलते देखे नंगे पांव पर
किताबें बेचने वालों के बच्चों को देखा मैने पढ़ाई से बेअसर
डॉक्टरों के घर में ही बैठा है बीमारियों का अंबर
जब बिना किसी स्वार्थ के हर कोई अपना श्रम करता जाए
मार धक्का दूजे को, आगे बढ़ने का भ्रम भी मिटता जाए
तो मेरे दोस्त, मेरा परमात्मा से मिलन न हो जाए
काश ऐसा हो जाए

कठोर परिश्रम कर जाने पर भी दूर हो जब सफलता की राहें
पूरी-पूरी, होते-होते थम जाएं अचानक मन की अनमोल चाहें
तो बात मेरी मानो तुम न डालो खुदा पे शक की निगाहें
जमीर को न हिलने देना सच की कश्ती न तुम्हारी डगमगाए
यकीन रखो न जाने कब समय की रफतार ही बदल जाए
और सहसा तुम्हारा ख्वाब तुम्हें पूरा होता नजर आ जाए
तो सोच लो कि अपने अच्छे कामों से तुम परमात्मा के प्यारे बन पाए
काश ऐसा हो जाए

मीनाक्षी भसीन 11-12-14© सर्वाधिकार सुरक्षित

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